तू एहल-ए-नज़र है तो नहीं तुझको ख़बर क्यों, पहलू में तेरे कोई ज़माने से खड़ा है


हैरान हूँ के यह कौन सा दस्तूर-ए-वफ़ा है
तू मिस्ल-ए-रग-ए-जां है तो फ़िर, क्यों मुझसे जुदा है !

तू एहल-ए-नज़र है तो नहीं तुझको ख़बर क्यों
पहलू में तेरे कोई ज़माने से खड़ा है !

लिखा है मेरा नाम समंदर पे हवा ने
और दोनों की फ़ितरत में सकूं हैं , न वफ़ा है !

शिकवा नहीं मुझको के हूँ मेहरूम-ए-तमन्ना
ग़म है तो फ़क़त इतना के तू देख रहा है !

हम रखते हैं दावा के है क़ाबू हमें दिल पर
तू सामने आ जाए तो यह बात जुदा है !

ग़म है के मुसलसल इसी शिद्दत से है ताज़ा
यूं केहने को इस उम्र का हर लम्हा नया है !
...
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