बुरा हो पा-ए-सरकश का, की थक जाना नहीं आता,
कभी गुमराह को, हर राह पर आना नहीं आता …
मुसीबत का पहाड़ आख़िर किसी दिन कट ही जायेगा,
मुझे सर मार के तेशे से, मर जाना नहीं आता …
अज़ल से तेरा बन्दा हूँ, तेरा हर हुक़्म आंखों पर,
मगर फ़रमान-ए-आज़ादी, बजा नामा नहीं आता …
मुझे ए नाखुदा आख़िर किसी को मुँह दिखाना है,
बहाना कर के तन्हा पार उतर जाना नहीं आता …
सरापा राज़ हूँ मैं, क्या बताऊँ, कौन हूँ, क्या हूँ
समझता हूँ, मगर दुनिया को समझाना नहीं आता …
असीर-ओ-शौक-ए-आज़ादी मुझे भी गुदगुदाता है,
मगर चादर से बाहर पाँव फैलाना नहीं आता …
दिल यह बेहौसला है, एक ज़रा सी ठेस का मेहमान,
वो आंसू क्या पिएगा, जिस को ग़म उठाना नहीं आता …
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