उन्हीं के शीशा-ए-दिल चूर चूर होके रहे .. तरस रहे थे जो दुनिया में, दोस्ती के लिए I

तुझसे पहेले जो तमन्ना थी, वो ही है अब तक
तुझको पाकर भी किसी शय की कमी है अब तक ...
हमें जीना है अभी नित नए इल्ज़ाम न दो
हम ने कब बात तुम्हें, दिल की कही है अब तक ...
तुझसे मिलकर भी, तेरे हिज्र के सदमे न गए
इस मुसर्रत में भी एहसास-ए-ग़मी है अब तक ...
ऐसी तन्हाई के आंसू भी नहीं आंखों में,
और यह रात के, तारों से भरी है अब तक ...
किस को समझाएं के 'आयूब' बड़ी चीज़ थे हम,
हो गए ख़ाक मगर, नाम वही है अब तक ...
...
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