वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन, उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा ..

वो हमसफ़र था, मगर उस से हम-नवाई न थी
कि धूप छांव का आलम रहा … जुदाई न थी !
अदावातें थी, तगाफुल था, रंजिशें थी मगर …
बिछड़वाले में सब कुछ था, बेवफ़ाई न थी !
बिछड़ते वक्त उन आंखों में थी हमारी ग़ज़ल,
ग़ज़ल भी वो जो किसी को अभी सुनाई न थी !
अजीब होती है राहे सुखन भी देख 'नसीर',
वहाँ भी आ गए आख़िर जहाँ रसाई न थी !
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