कभी ख़्वाबों में मिला वह, तो ख्यालों में कभी ... राह चलते न मिला दिन के उजालों में कभी ...

मैं ख़याल हूँ किसी और का, मुझे सोचता कोई और है
सरे आइना मेरा अक्स है, पसे आइना कोई और है ...

मैं किसी के दस्त-ए-तलब में हूँ, तो किसी के हर्फ़-ए-दुआ में हूँ
मैं नसीब हूँ किसी और का, मुझे मांगता कोई और है ...

तुझे दुश्मनों की ख़बर न थी, मुझे दोस्तों का पता न था
तेरी दासतां कोई और थी, मेरा वाक़या कोई और है ...

कभी लौट आयें तो न पूछना, सिर्फ़ देखना बड़े गौर से
जिन्हें रास्ते में ख़बर हुई, कि यह रास्ता कोई और है ...

अजब ऐतबार-ओ-बे-ऐतबारी के दरमियां है जिंदगी
मैं क़रीब हूँ किसी और के, मुझे जानता कोई और है ...

वही मुन्सिफ़ों की रिवायतें, वही फ़ैसलों की इबारतें
मेरा जुर्म तो कोई और था, पर मेरी सज़ा कोई और है ...

मेरी रौशनी तेरी खात ओ ख़ाल से मुख्तलिफ़ तो नहीं मगर,
तू क़रीब आ तुझे देख लूँ, तू वही या कोई और है ...

जो मेरी रायाज़त-ए-नीम-शब को "सलीम" सुबह न मिल सकी, तो इसकी मानी तो यह हुए, के यहाँ खुदा कोई और है ...

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