जो खिले हुए हैं रविश रविश, वो हज़ार हुस्न चमन सही ….मगर उन गुलों का जवाब का, जो कदम - कदम पे कुचल गए !

भूली बिसरी चंद उम्मीदें, चंद फ़साने याद आए
तुम याद आए और तुम्हारे साथ, ज़माने याद आए ...

दिल का चमन शादाब था, फिर भी, खाख़ सी उड़ती रहती थी
कैसे ज़माने ऐ गम-ए-जाना, तेरे बहाने याद आए ...

हँसने वालों से डरते थे, छुप-छुप कर रो लेते थे
गहरी गहरी सोच में डूबे, दो दीवाने याद आए ...

ठंडी सर्द हवा के झोंके आग लगाकर छोड़ गए
फूल खिले शाखों पे नए, और दर्द पुराने याद आए ...
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