हम फूल हैं, औरों के लिए लाये हैं खुशबू.. अपने लिए ले दे के बस एक दाग़ मिला है ..

मैं ज़र्द बीज हूँ, सब्ज़ होना चाहता हूँ,
मेरी ज़मीन, तेरी मिट्टी का मशवरा क्या है..

बिख़र रहा हूँ तेरी तरह मैं भी, ए रद-ए-गुल,
सो तुझ से पूछता हूँ, तेरा तजुर्बा क्या है॥

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