सरापा राज़ हूँ मैं, क्या बताऊँ, कौन हूँ, क्या हूँ .. समझता हूँ, मगर दुनिया को समझाना नहीं आता ..

मुझे दिल की खता पर "यास" शर्माना नहीं आता
पराया जुर्म अपने नाम लिखवाना नहीं आता …

बुरा हो पा-ए-सरकश का, की थक जाना नहीं आता,
कभी गुमराह को, हर राह पर आना नहीं आता …

मुसीबत का पहाड़ आख़िर किसी दिन कट ही जायेगा,
मुझे सर मार के तेशे से, मर जाना नहीं आता …

अज़ल से तेरा बन्दा हूँ, तेरा हर हुक़्म आंखों पर,
मगर फ़रमान-ए-आज़ादी, बजा नामा नहीं आता …

मुझे ए नाखुदा आख़िर किसी को मुँह दिखाना है,
बहाना कर के तन्हा पार उतर जाना नहीं आता …

सरापा राज़ हूँ मैं, क्या बताऊँ, कौन हूँ, क्या हूँ
समझता हूँ, मगर दुनिया को समझाना नहीं आता …

असीर-ओ-शौक-ए-आज़ादी मुझे भी गुदगुदाता है,
मगर चादर से बाहर पाँव फैलाना नहीं आता …

दिल यह बेहौसला है, एक ज़रा सी ठेस का मेहमान,
वो आंसू क्या पिएगा, जिस को ग़म उठाना नहीं आता …
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अपनी हस्ती का भी इंसान को इर्फ़ान न हुआ, ख़ाक फिर ख़ाक थी, औकात के आगे न बढ़ी ..

मुझसा दे ज़माने को, परवरदिगार, दिल
आशुफ्ता दिल, फ़रीफ़्त दिल, बेक़रार दिल ...

निकले मेरी बगल से वो ऐसी तड़प के साथ,

याद आएगा मुझे वही बे-इख्तियार दिल ...

हर बार मांगती हैं नया चश्म-ए-यार दिल,
इक दिल को किस तरह से बनाऊं हज़ार दिल ...

करते हो एहद-ए-वस्ल तो इतना रहे ख़याल,
पैमान से ज़्यादा है, नापायेदार दिल ...

आलम हुआ तमाम, रहा उसको शौक़-ए-ज़ोर,
बरसाए आसमान से परवरदिगार, दिल ...

पहले पहेल की चाह का कीजे न इम्तिहान,
आना तो सीख ले अभी दो चार बार दिल ...

मशहूर हैं सिकंदर-ओ-जाम की निशानियाँ
ए 'दाग़' छोड़ जायेंगे हम यादगार दिल ...

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हम फूल हैं, औरों के लिए लाये हैं खुशबू.. अपने लिए ले दे के बस एक दाग़ मिला है ..

मैं ज़र्द बीज हूँ, सब्ज़ होना चाहता हूँ,
मेरी ज़मीन, तेरी मिट्टी का मशवरा क्या है..

बिख़र रहा हूँ तेरी तरह मैं भी, ए रद-ए-गुल,
सो तुझ से पूछता हूँ, तेरा तजुर्बा क्या है॥

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जो खिले हुए हैं रविश रविश, वो हज़ार हुस्न चमन सही ….मगर उन गुलों का जवाब का, जो कदम - कदम पे कुचल गए !

भूली बिसरी चंद उम्मीदें, चंद फ़साने याद आए
तुम याद आए और तुम्हारे साथ, ज़माने याद आए ...

दिल का चमन शादाब था, फिर भी, खाख़ सी उड़ती रहती थी
कैसे ज़माने ऐ गम-ए-जाना, तेरे बहाने याद आए ...

हँसने वालों से डरते थे, छुप-छुप कर रो लेते थे
गहरी गहरी सोच में डूबे, दो दीवाने याद आए ...

ठंडी सर्द हवा के झोंके आग लगाकर छोड़ गए
फूल खिले शाखों पे नए, और दर्द पुराने याद आए ...
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इन्हीं पथ्थरों पे चल कर अगर आ सको, तो आओ .. मेरे घर के रास्ते में कोई कहकशां नहीं है ...

किसी और ग़म में इतनी खलिशें निहां नहीं है
गमें दिल मेरे रफ़ीक़ो गमें राएगां नहीं है ...

कोई हमनफ़स नहीं है, कोई राज़दान नहीं है
फ़क़त एक दिल था अब तक, सो वो महेरबां नहीं है …

मेरी रूह की हक़ीक़त, मेरे आंसुओं से पूछो
मेरा मजलिसी तबस्सुम, मेरा तर्जुमान नहीं है …

किसी आँख को सदा दो, किसी ज़ुल्फ़ को पुकारो
बड़ी धुप पड़ रही है, कोई सायबां नहीं है ...

इन्हीं पथ्थरों पे चल कर अगर आ सको, तो आओ
मेरे घर के रास्ते में कोई कहकशां नहीं है ...
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इस कदर अकेले हो गए हैं हम आज-कल, कोई सताता भी नहीं, कोई मनाता भी नहीं ..

सोचते और जागते, साँसों का इक दरिया हूँ मैं,
अपने गुम्गश्ता किनारों के लिए, बेहता हूँ मैं ..

जल गया सारा बदन इन मौसमों की आग में,
एक मौसम रूह का है, जिसमे अब जिंदा हूँ मैं ..

मेरे होंठों का तबस्सुम दे गया धोखा तुझे
तूने मुझको बाग़ जाना, देख ले सेहरा हूँ मैं ..

देखिये, मेरी पज़ीराई को अब आता हैं कौन,
लमहा भर को, वक्त की देहलीज़ पर आया हूँ मैं ..
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उन्हीं के शीशा-ए-दिल चूर चूर होके रहे .. तरस रहे थे जो दुनिया में, दोस्ती के लिए I

तुझसे पहेले जो तमन्ना थी, वो ही है अब तक
तुझको पाकर भी किसी शय की कमी है अब तक ...
हमें जीना है अभी नित नए इल्ज़ाम न दो
हम ने कब बात तुम्हें, दिल की कही है अब तक ...
तुझसे मिलकर भी, तेरे हिज्र के सदमे न गए
इस मुसर्रत में भी एहसास-ए-ग़मी है अब तक ...
ऐसी तन्हाई के आंसू भी नहीं आंखों में,
और यह रात के, तारों से भरी है अब तक ...
किस को समझाएं के 'आयूब' बड़ी चीज़ थे हम,
हो गए ख़ाक मगर, नाम वही है अब तक ...
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वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन, उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा ..

वो हमसफ़र था, मगर उस से हम-नवाई न थी
कि धूप छांव का आलम रहा … जुदाई न थी !
अदावातें थी, तगाफुल था, रंजिशें थी मगर …
बिछड़वाले में सब कुछ था, बेवफ़ाई न थी !
बिछड़ते वक्त उन आंखों में थी हमारी ग़ज़ल,
ग़ज़ल भी वो जो किसी को अभी सुनाई न थी !
अजीब होती है राहे सुखन भी देख 'नसीर',
वहाँ भी आ गए आख़िर जहाँ रसाई न थी !
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